ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

ashok stambh ।अशोक स्तंभ

अशोक स्तंभ। ashok stambh

इस दुनिया के प्रत्येक देश का कोई ना कोई अपना प्रतीक चिह्न होता है जो उस देश के शौर्य, सत्ता, सभ्यता और वीर गाथा और संस्कृति को दर्शाता है।


इसी तरह भारत की आन बान और शान को दर्शाता है। अशोक चक्र यह चक्र भारत के आदिकाल के महत्व को दर्शाता है। वैसे चक्र को आदि काल से ही गति एवं जीवन का प्रतीक माना गया है। इसे ही विश्व का भचक्र कहा गया है और इस भवचक्र को ध्यान में रखते हुए ही प्राणमय जीवन को जीवन चक्र और विराट की स्थिति को ब्रह्मचक्र कहा जाता है तथा ब्रह्मा की शक्ति इस चक्र के पहिए की तरह घूमती रहती है। चक्र को अपने आप में पूर्ण माना गया है, इसलिए चक्र को अर्चना एवं दिव्य उपादानों में दानों में शामिल किया जाता है। यही नहीं, ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति भी चक्र चक्र से की जाती है। ब्रह्मांड एवं शून्य के रूप में चक्र की अभिव्यक्ति चिंतन के विराट एवं सूक्ष्म रूप में की जाती है।
अशोक चक्र 


इन्हीं प्रतीक चिन्हों में चक्र एक ऐसा प्रतीक चिन्ह है जिसे प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता रहा है। इसी की एक कड़ी है भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र। अशोक चक्र को धर्म चक्र भी कहते हैं क्योंकि संस्कृति में चक्र को पहिया कहा जाता है। जिसमें कुल 24 लकीरे हैं जो बुद्ध के बताए 14 प्रतीक हैं। इस चक्र का प्रयोग हमारे राष्ट्रिय ध्वज में भी किया गया है। और अशोक चक्र का निर्माण काल मौर्य वंश के सबसे प्रतापी और शक्तिशाली शासक चक्रवर्ती अशोक के शासनकाल 273-232 ईसा पूर्व माना जाता है। परंतु, मुख्य रूप से अशोक चक्र की शुरुआत बौद्ध काल में ही हुई, जब सम्राट अशोक द्वारा सिंह एवं चक्र का प्रयोग किया गया इसलिए इसे अशोक चक्र कहा गया। वैसे सम्राट अशोक से पूर्व ही चक्र एवं सिंह का प्रयोग होता रहा है।

संभवत सिंह के आधार पर शासनाध्यक्षों के आसन को सिंहासन कहा गया। शक्ति का वाहन भी सिंह माना गया है। यदि सिंह में निहित अध्यात्मिक भावधारा को देखें तो अशोक चक्र में सिंह की 4 मूर्तियां हैं। लेकिन इसमें से तीन ही हमें दिखाई पड़ते हैं। इसलिए दिखने वाले त्रिमूर्ति सिंह में सत, रज एवं तन तीनों गुणों की सुंदर भावना का समावेश हुआ है। यही नहीं यह हिंसा और दया का भी प्रतीक है। यद्यपि सिंह हिंसक जीव है किंतु यह शक्ति शौर्य एवं पराक्रम को भी अपने में संजोए हुए हैं। यही कारण है कि सिंह को शासकीय पराक्रम शौर्य एवं शक्ति का भी घोतक माना जाता है। किंतु सम्राट अशोक ने सिंह के मस्तक पर धर्म चक्र को प्रतिष्ठापित कर के यह सिद्ध कर दिया कि सिंह सात्विक भावना का प्रतीक है। संभवतः इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए सिंह को श्रेष्ठता का सूचक माना जाता है। 


वैसे जहां तक चक्र की बात है तो चक्र का प्रयोग भी अति प्राचीन काल से प्रतीक रूप में भारत में होता चला आ रहा ह। चक्र भारतीय परंपरा के आध्यात्म समदर्शिता एवं जीवन की प्रगति का परिचायक है। चक्र का उपयोग शस्त्र के रूप में भी किया जाता है। ऋग्वैदिक ग्रंथों, महाभारत एवं पौराणिक ग्रंथों में भगवान विष्णु सहित अन्य देवगणों के आयुधों में भी चक्र का प्रयोग होता रहा। इस तरह चक्र की गतिशीलता निरंतर कायम रही और चक्र की इस निरंतर गतिशीलता को ही धर्म के रूप में विश्व का आधार माना गया। चक्र की पूजा अर्चना की जाने लगी तथा चक्र लोक मानस के दिव्यतम एवं पावन उपास्य के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। देवताओं के विभिन्न शारीरिक लक्षणों में चक्र को ही विशेष स्थान प्राप्त था। भगवान विष्णु, राम और कृष्ण के शारीरिक लक्षणों में भी चक्र ने विशिष्ट स्थान ग्रहण किया। इसी तरह भगवान बुध की हथेली और पैरों के तलवे पर चक्र के अंकन का उल्लेख बुद्धचरित ग्रंथ में किया गया है। भगवान महावीर के भी 1008 शारीरिक लक्षणों में से चक्र को प्रधानता मिली। महान रजा-महाराजा ही चक्रवर्ती सम्राट कहलाते थे, क्योंकि उनके शारीरिक लक्षणों में चक्र की ही प्रधानता होती थी।


हमारे इस भारतीय प्रतीक चिन्ह अशोक चक्र को देखने मात्र से हमे  गर्व की अनुभूति होती है। इसमे हमारी सुरक्षा, शौर्य, सत्ता तथा सभ्यता के भाव दृष्टिगोचर होते हैं तथा मन में देश के प्रति अपने कर्तव्य की भावना प्रगट होती है।

अशोक स्तंभ का वास्तुशास्त्र में प्रयोग

वशतुषास्त्र के अनुसार इस अशोकचक्र स्तंभ का प्रतीक लकड़ी अथवा ब्रास धातु में घर के विशेष स्थानों में रखने से ऊर्जा में वृद्धि, बीमारियों से छुटकारा, कोर्ट केस में अशानुकूलित विजय मिलने की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि आज के आधुनिक वास्तुशास्त्री विशेष वास्तु दोषों को दूर करने में इसका प्रयोग करते रहते हैं।

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