ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

मंगलवार, 7 मई 2024

padam kalsarp yog। पद्म कालसर्प योग

पद्म कालसर्प योग । padam kalsarp yog

जन्मकुण्डली में जब राहु पंचम व केतु एकादश भाव में हों तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म नामक कालसर्प योग बनता है।

पद्म कालसर्प योग padam kaal sarp yog in hindi

इस योग के फल स्वरूप जातक को जल्दी संतान सुख नहीं मिलता। पुत्र संतान की चिंता रहती है। यदि संतान हो भी जाये तो बृद्धावस्था में अलग हो जाती है अथवा दूर चली जाती है।विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रू भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं।प्रायः व्याधियों के कारण इलाज में अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।

पद्म कालसर्प योग का उपाय

* घर के शयनकक्ष में मोर पंख लगाएं तथा प्रतिदिन कम से कम एक बार मोर पंख अपने पुरे शारीर पे फिराऐं।
* किसी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
* शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्र धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं।
* भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तेलाभिषेक करें।
* श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्र व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।

कालसर्प को लेकर पं. उदय प्रकाश शर्मा की अपनी बात


मुझे कुछ पाठकों ने मैसेज में लिखा की गुरु जी यह कालसर्प योग तो होता ही नहीं, इसका किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता तो उन्हें मै इतना ही कहना चाहूँगा कि काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है. कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी खोज बाद में हुई, अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता, अब जैसे ब्लॉग पहले नहीं होता था, ईमेल पहले नहीं होती थी, लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता,  मगर आज यह मौजूद हैं उसी तरह युग युगांतर से हर विषय में शोध कार्य होता रहता है और जीवन में जो अनुभव में आता है, वह प्रतिपादित भी होता है तो उसे अपने अनुभव की कसौटी पर परखने के बाद हमें स्वीकार्य करना ही  पड़ता है।

कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता ही कही जाएगी। कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है. कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है, कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं । इसे एकदम से नकार देना भी उचित न होगा। 

यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यहाँ हम यह कहना चाहेंगे कि अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर ही है, इसलिए ग्रहों को इसका दोष नहीं देना चाहिए बल्कि अपने शुभ कर्मों को बढ़ाना चाहिये व अशुभ कर्मों में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए तथा इश्वर पे भरोषा कर, हमेशा आशावान रहना चाहिये।  

।। इति शुभम् ।।


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रविवार, 21 मार्च 2021

Mangal Dosh Rectification मंगली योग का परिहार

 

मंगली योग का परिहार । mangal Dosh Rectification

mangal dosha parihara in hindi I mangal dosh rectification in hindi


ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रन्थों में मंगली योग के परिहार का उल्लेख मिलता है। परिहार भी आत्म कुण्डलिगत एवं पर कुण्डलिगत भेद से दो प्रकार के होते हैं । वर या कन्या की कुंडली में मंगली योग होने पर उसी की कुण्डली को जो योग मंगली दोष को निष्फल कर देता है, वह परिहार योग आत्म कुण्डलिगत कहलाता है। तथा वर या कन्या इन दोनों में से किसी एक की कुण्डली में मंगल योग का दुष्प्रभाव दूसरे की कुण्डली के जिस योग से दूर हो जाता है, वह पर कुण्डलिगत परिहार योग कहा जाता है।


(1) वर कन्या में से किसी एक की कुंडली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है।

(2) जिस कुण्डली में मंगली योग हो यदि उसमे शुभ ग्रह केंद्र, त्रिकोण में तथा शेष पाप ग्रह त्रिषडाय में हो तथा सप्तमेश सप्तम स्थान में हो तो भी मंगली योग प्रभावहीन हो जाता है।

(3) यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो तो मंगल दोष प्रभावहीन हो जाता है।

(4) कुण्डली में लग्न आदि 5 भावों में से जिस भाव में भौमादि ग्रह के बैठने से मंगली योग बनता हो, यदि उस भाव का स्वामी बलवान् हो तथा उस भाव में बैठा हो या देखता हो साथ ही सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थान में न हों तो मंगली योग का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है।

(5) वर कन्या में से किसी एक की कुण्डली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में मंगली योगकारक भाव में कोई पाप ग्रह हो तो भी मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है।

(6) जिस कुण्डली में सप्तमेश या शुक्र बलवान हों तथा सप्तम भाव इनसे युत-दृष्ट हो उस कुंडली में मंगल दोष का प्रभाव न्यून हो जाता है।

(7) मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ स्थान में होने पर, कर्क या मकर का मंगल सप्तम स्थान में होने पर, मीन का मंगल अष्टम में होने पर, तथा मेष या कर्क का मंगल व्यय स्थान में होने पर मंगल दोष नहीं लगता।

(8) मेष लग्न में स्थित, मंगल, वृश्चिक राशि में चतुर्थ भाव में स्थित मंगल, वृषभ राशि में सप्तम स्थान में मंगल, कुम्भ राशि में अष्टम स्थान में स्थित मंगल तथा धनु राशि में व्यय स्थान में स्थित मंगल मंगली दोष नहीं करता।

(9) मंगली योग वाली कुंडली में बलवान् गुरु या शुक्र के लग्न या सप्तम में होने पर अथवा मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष का प्रभाव दूर हो जाता है।

(10) यदि मंगली योगकारक ग्रह स्वराशि मूलत्रिकोण राशि या उच्च राशि में हो तो मंगली दोष स्वयं समाप्त हो जाता है।

।। इति शुभम् ।।

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रविवार, 10 जनवरी 2021

toilet ki disha vastu ke anusar । वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा

 toilet ki disha vastu ke anusar । वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा 

आज के समय में बन रहे ज्यादातर घरों में स्थान की कमी अथवा शहरी संस्कृति और शास्त्रों की अनभिज्ञता के कारण शौचालय का निर्माण गलत दिशा में हो जाता है जिससे उस घर मे रहने वाले परिवार को स्वास्थ्य और धन संबंधी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः जब भी घर में शौचालय का निर्माण कराया जाए तो उसे वास्तु के अनुसार ही करना चाहिए, नहीं तो ये घर में यही शौचालय negative energy नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश का कारण बनते हैं। इनकी गलत दिशा के कारण परिवार के लोगों का स्वास्थ्य खराब बना रह सकता है। तो आइए मित्रों जानते हैं कि शौचालय निर्माण में किन मुख्य बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है? 


सर्वप्रथम वस्तुशात्र के अनुसार घर में शौचालय के लिए सबसे अच्छा स्थान SSW  अथवा WNW एवं ESE  का होता है। घर के मध्य में शौचालय नहीं बनाया जाना चाहिए यह घर (भवन) का ब्रह्म स्थल होता है यहां वास्तु पुरुष की नाभि होती है, यहां बना शौचालय स्वास्थ्य के साथ जीवन में संघर्ष की शक्ति को समाप्त करता है। ईशान अथवा नैऋत्य कोण में शौचालय का निर्माण निषिद्ध किया गया है। ईशान कोण में शौचालय होने से गृह-क्लेश में वृद्धि होती है साथ ही कैंसर जैसा भयंकर रोग होने कि संभावना रहिती है, घर के बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, नए और शुभ विचार नहीं आते, घर को आर्थिक संकटों का सामना निरंतर करना पड़ता है तथा सारे घर में negative energy अपवित्रता का वातावरण हमेशा बना रहता है। वहीं नैऋत्य कोण में शौचालय बनाने से मानसिक अस्थिरता, संबंधों में खटास, प्रगति में बाधा, नजर दोष तथा शारीरिक कष्टों में वृद्धि होती है। 

यदि शौचालय कमरे के साथ ही बनाना हो तो इसे कमरे के वायव्य कोण में बनाना चाहिए। नैऋत्य कोण में शौचालय निर्माण सर्वथा निषिद्ध है। शौचालय में ताजी हवा तथा प्रकाश के आगमन की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। शौचालय का दरवाजा पूर्व अथवा अग्नि कोण में होना चाहिए तथा टॉयलेट सीट इस प्रकार फिट होनी चाहिए कि सीट पर बैठते समय व्यक्ति का मुख दक्षिण अथवा उत्तर दिशा की ओर रहे, भूलकर भी मुख पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर नहीं करना चाहिए। शौचालय में पानी की व्यवस्था पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होनी चाहिए, अगर वाशबेसिन भी शौचालय में लगाए जाने हैं तो वह भी पूर्व अथवा उत्तर दिशा में ही लगाने चाहिए। वैसे शौचालय में दर्पण का प्रयोग वर्जित है फिर भी अगर लगाना है तो उसे भी उत्तरी और पूर्वी दीवाल पर ही लगाएं। शौचालय कभी भी रसोई घर के सामने ना बनाएं अगर शौचालय एवं स्नानघर इकट्ठा बनाना है तो यह पश्चिम वायव्य अथवा पूर्व आग्नेय दिशा में होना चाहिए इसमें लगे शावर व नल आदि ईशान कोण में तथा टॉयलेट की सीट वायव्य कोण में होनी चाहिए यह पश्चिम दिशा में भी सुविधा अनुसार रखी जा सकती है वाशबेसिन की स्थिति पश्चिम में होनी चाहिए।

अगर किसी कारण वश शौचालय का निर्माण गलत हुआ है तो निम्नलिखित कुछ उपाय करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा को आने से रोका जा सकता है। 

शौचालय के लिए वास्तु टिप्स toilet vastu remedies


*अगर पूर्व दिशा और दक्षिण दिशा के मध्य स्थान तक शौचालय की खिड़की खुलती हो तो उस खिड़की में 3 क्रिस्टल की बॉल लाल रिबन में बांधकर लटका दें जब सूर्य की रश्मियां उस क्रिस्टल बॉल से टकराकर शौचालय में पड़ेंगी तो वहां की नकारात्मक ऊर्जा जल जाएगी।

* शौचालय की दुर्गंध घर में बिल्कुल न फैले इसका विशेष ध्यान रखें, इसके लिए सुगंधित चीजों का छिड़काव आदि करें।

* शौचालय में किसी सूखे स्थान पर समुद्री नमक किसी कांच की कटोरी आदि में भरकर रखे और सप्ताह में एक बार उसी कमोड में डालकर फ्लश कर दें तथा वापस नया नमक रख दें।

नोट- इस तरह के कुछ उपाय करने से बहोत हद तक सकारात्मक लाभ उठाया जा सकता है, अधिक जानकारी के लिए अपने वास्तु सलाहकार की मदत लें।

।। इति शुभम् ।।

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shankhpal kalsarp yog। शंखपाल कालसर्प योग और उपाय

शंखपाल कालसर्प योग और उपाय । shankhpal kalsarp yog

जन्मकुण्डली में जब राहु चौथे भाव में और केतु दशवें भाव में हो इनके बीच सारे ग्रह स्थित हों तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है।

                                       shankhpal kalsarp yog aur upay। शंखपाल कालसर्प योग और उपाय


जातक को घर, वाहन, माता का अपेक्षित सुख नहीं मिलता । कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है।अपने ही विश्वासघात करते हैं। सुख-संवृद्धि तथा चल-अचल संपत्ति संबंधी अनेक परेसानी उठानी पड़ती है। नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन भी खोता रहता है। कार्य के क्षेत्रा में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्रा में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।

शंखपाल कालसर्प योग का उपाय 

* राहु का मन्त्र जाप करने तथा नागपंचमी का व्रत करने व सर्पों को दूध पिलाने से इस योग के बुरे फलों में कमी आती है।
* शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
* शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
* 86 शनिवार का व्रत करें और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। और हनुमान जी को मंगलवार को चोला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें।
* किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को बहते जल में प्रवाहित करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
* शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और रसोईं में बैठकर भोजन करें। हनुमान चालीसा का नित्य 11 पाठ करें।
* सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।
* किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।

कालसर्प को लेकर पं. उदय प्रकाश शर्मा की अपनी बात 


मुझे कुछ पाठकों ने मैसेज में लिखा की गुरु जी यह कालसर्प योग तो होता ही नहीं, इसका किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता तो उन्हें मै इतना ही कहना चाहूँगा कि काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है. कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी खोज बाद में हुई, अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता, अब जैसे ब्लॉग पहले नहीं होता था, ईमेल पहले नहीं होती थी, लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता,  मगर आज यह मौजूद हैं उसी तरह युग युगांतर से हर विषय में शोध कार्य होता रहता है और जीवन में जो अनुभव में आता है, वह प्रतिपादित भी होता है तो उसे अपने अनुभव की कसौटी पर परखने के बाद हमें स्वीकार्य करना ही  पड़ता है।

कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता ही कही जाएगी। कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है. कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है, कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं । इसे एकदम से नकार देना भी उचित न होगा। 

यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यहाँ हम यह कहना चाहेंगे कि अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर ही है, इसलिए ग्रहों को इसका दोष नहीं देना चाहिए बल्कि अपने शुभ कर्मों को बढ़ाना चाहिये व अशुभ कर्मों में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए तथा इश्वर पे भरोषा कर, हमेशा आशावान रहना चाहिये। 
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।। इति शुभम् ।।


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गुरुवार, 7 जनवरी 2021

mangalwar ko janme log । मंगलवार को जन्मे लोग

 mangalwar ko janme log । मंगलवार को जन्मे लोग 


अक्सर मुझे ऐसे लोग मिलते हैं जो कहते हैं पंडित जी मेरा फलां दिन का जन्म हुआ है मेरे बारे में कुछ बताइए, मुझे मेरी जन्म तिथि, दिनांक, सनसमय कुछ भी ज्ञात नहीं बस यही दिन पता है कि मेरा जन्म मंगलवार को हुआ है । तो यह आर्टिकल उन्हीं लोगों के लिए  है

मंगलवार के दिन जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव । Tuesday Birth

मंगलवार के दिन जन्म लेने वाले जातक की प्रकृति गर्म होती है। यह पराक्रमी, वीर, साहसी एवं संग्राम में  विजय प्राप्त करने वाले  होते है। इसकी बुद्धि विशेष अच्छी नहीं होती, इसी से यह बौद्धिक  कार्यों से अलग रहना पसंद करते है, परन्तु वीरता के कार्यों में आगे बढ़-चढ़ कर भाग लेने वाले होते है। प्रायः यह सांवले रंग के होते हैं पर इनमे आकर्षण शक्ति बहुत गजब की होती है जिसकी वजह से विपरीत लिंगी इनकी तरफ बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं । 

यह लोग अपने शरीर को ही सब कुछ समझते हैं जैसे आज के समय में फ़िल्म अभिनेता, अभिनेत्री, जिम्नास्टिक आदि जो अपने शरीर को ही अपने कर्म का साधन बना लेते हैं, यह लोग रक्षा विभाग, पुलिस, आर्मी,  डाक्टरी शल्य चिकित्सा (surgery), खेल -कूद आदि में भी अग्रणी होते हैं। अपनी वाक्पटुता से यह लोगों को  सहज ही आकर्षित कर लेते हैं। इनको रक्त संबंधी रिश्तों जैसे- चाचा, बुआ, बहन आदि से विशेष सहयोग प्राप्त होता है। यह दुश्मनी, कर्जा, बीमारी, बदला आदि  को ज्यादा महत्त्व देते हैं और इनसे सामना करने हेतु अधिक धन इकठ्ठा करते हैं

जमीनी संपत्ति भी यह लोग खड़ी करते हैं। यह अपनी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते हैं। यह स्कूल आदि में पुस्तकों से सिखने के बजाय जीवन में कार्य कर के सिखने में अधिक विश्वास  करते हैं। यह जवानी के दिनों में कामुक भी बहुत होते हैं, इनके लिए प्रायः प्यार-मुहब्बत करना अक्सर मुसीबत बन जाता है, यह शंकालु भी बहोत होते हैं, यह अपनी पत्नी का लोगों से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करते, इनमे असुरक्षा की भावना भी अधिक होती है।

इन्हें  2, 32 वें वर्ष में कष्ट होता है तथा पूर्णायु 74 वर्ष की होती है।

मंगलवार के दिन जन्म लेने वालों के लिए उपाय 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन के स्वामी मंगल होते हैं अतः अपने चहुमुखी कल्याण हेतु मंगल देव के मन्त्रों का जप करना चाहिए तथा संकट मोचन हनुमान जी व भगवान कार्तिकेय की पूजा-आराधना इन्हें करनी चाहिए साथ ही अपने छोटे भाई बहनों का उचित मार्गदर्शन, सहयोग व उनकी सुरक्षा करनी चाहिए। उनके उदंडता पे क्रोधित न होकर छमाशीलता अपनाना चाहिए।

।। इति शुभम् ।।

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बुधवार, 6 जनवरी 2021

vrishabh lagn ke liye ratna । वृषभ लग्न के लिए रत्न

vrishabh lagn ke liye ratna । वृषभ लग्न के लिए रत्न 

vrishabh lagn ke liye ratna । वृषभ लग्न के लिए रत्न


रत्न का चुनाव सामान्यतः जन्मकुण्डली में “भाग्य भाव” जिसे कुंडली में नवम भाव भी कहते हैं, का स्वामी भाग्येश कहलाता है । भगयेश का रत्न पहनने से भाग्य प्रबल होता है । यदि भाग्येश के साथ केंद्र ( 1, 4, 7, 10 ) तथा त्रिकोण का स्वामी शुभ योग बनाकर कुंडली में बलि स्थिति में हो तो, ऐसे व्यक्ति के लिए भाग्य के स्वामी ग्रह का रत्न धारण करना उच्च स्तरीय सफलता दिलाता है। यदि भाग्य का स्वामी निर्बल हो तथा उसका जन्मकुंडली के अन्य शुभ एवं योगकारक ग्रहों से कोई सम्बन्ध नहीं हो, तो ऐसे व्यक्ति को भाग्येश का रत्न उतनी सफलता नहीं देता । ऐसी स्थिति में लग्नेश या पंचमेश ग्रह का उनकी स्थिति के अनुसार पहनने से जीवन में सफलता मिलती है।

रत्न विज्ञान ज्योतिष

रत्नों का चुनाव करने में लग्न की स्थिति विशेष महत्वपूर्ण होती है। विभिन्न लग्नो के लिए कौन- कौन से रत्न शुभ या अशुभ होते हैं । जानने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं। पं. उदय प्रकाश शर्मा


शुभ रत्न का चुनाव करते समय यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए की जिस ग्रह के रत्न को आप धारण करने वाले है, वह जन्मकुण्डली में शुभ भावों का स्वामी हो, यदि कोई ग्रह अशुभ भावों का स्वामी होकर आप को पीड़ित कर रहा हो, तो उसकी शांति हेतु मन्त्र जप, पूजा-अनुष्ठान आदि करवाना लाभप्रद होता है।

वृषभ लग्न में रत्न का चुनाव 

यह सत्य है की लग्न ही व्यक्तित्व का परिचायक होता है, प्रायः वृषभ लग्न के जातक विश्वसनीय और व्यवहारिक होते है जिसके कारण यह अपने नौकरी/व्यवसाय में अच्छी तरह से सफल होते हैं। साथ ही यह कामुक व्यक्ति भी  होते है तथा हर क्षेत्र में भौतिक सुख के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, यह बहुत उद्यमी भी होते है और अपने कार्यों को अपने अनुसार निश्चित समय में पूरा करते है। इस लग्न के लोग अपने मूल्य और सिद्धांत के प्रति काफी अडिग रहते हैं जिससे इनके दृष्टिकोण को बदलना आसान बिलकुल नहीं होता है। आइये जानते हैं कि इस लग्न के जातकों को कौन कौन सा रत्न धारण करना चाहिए और कौन से रत्न से परहेज करना चाहिए?

वृषभ लग्न में सूर्य रत्न माणिक्य  Ruby

वृषभ लग्न की कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होता है। अतः सूर्य के निर्बल होने के कारण भूमि-संपत्ति, गाड़ी, मकान आदि के मामले में कमी रहेगी इस लिए सूर्य रत्न माणिक्य धारण करना लाभप्रद होगा पर इसे तभी धारण करें जब सूर्य कुंडली में 1, 2, 4, 5, 10, 11,  स्थानों में स्थित हो, पर हाँ अपने ज्योतिषी से परामर्श अवश्य ले लें। अगर सूर्य 3, 6, 7, 8, 9 स्थान में हो तो माणिक्य बिलकुल भी धारण न करें। कुंडली के बारहवें भाव में यह उच्च का होता है ऐसे में माणिक्य धारण करने से खर्चे बढ़ जायेंगे पर सुविधाएँ भी ऊँचे दर्जे की मिलेंगी।

वृषभ लग्न में चन्द्र रत्न मोती Pearl

वृषभ लग्न में चन्द्रमा तीसरे भाव का स्वामी हो जाता है और साथ ही यह इस लग्न के स्वामी शुक्र का शत्रु भी है अतः वृषभ लग्न में मोती धारण करना कुछ खास लाभदायक नहीं होता। हाँ अगर चन्द्रमा की महादशा- अन्तर्दशा चल रही हो और यह कुंडली में 1, 3, 9, 11 स्थानों में हो तो मोती धारण किया जा सकता है पर अपने ज्योतिषी से परामर्श अवश्य ले लें । इसके अतिरिक्त चंद्रमा अन्य भावों में स्थित हो तो मोती बिल्कुल भी धारण न करें बल्कि इसकी पूजा करें।
चन्द्र ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं अचूक उपाय

वृषभ लग्न में मंगल रत्न मूंगा Coral

इस लग्न में मंगल सातवें  एवं बारहवें भाव का स्वामी होता है, ज्योतिष में बारहवें भाव का स्वामी अपनी दूसरी राशी का फल देता है ऐसा ऋषि परासर ने कहा है अतः मंगल यहाँ सातवें भाव का फल करेगा, पर इसे केंद्राधिपति दोष भी लग जायेगा, अतः यह वृषभ लग्न के लिए तटस्थ हो जायेगा अर्थात यह न अधिक बुरा होगा न अधिक शुभ,अगर इसकी दशा अन्तर्दशा चल रही हो और यह कुंडली के 1,7, 9, 10, 11 वें भाव में स्थित हो तो अपने ज्योतिषी से सलाह लेकर मूंगा रत्न धारण कर सकते हैं अन्यथा इस लग्न वाले जातक मूंगा धारण न करें तो उचित है।

वृषभ लग्न में बुध रत्न पन्ना Emerald

इस लग्न में बुध लग्नेश शुक्र का मित्र होता है तथा कुंडली के दो शुभ भावों दुसरे एवं पांचवें का स्वामी होकर धनेश और त्रिकोणपति भी बनता है अगर वृषभ लग्न में बुध रत्न पन्ना धारण किया जाये तो  यह खूब धन-धान्य, संतान, कुटुंब, विद्या-बुद्धि, उच्च शिक्षा, प्रभावशाली वाणी, मंत्री पद आदि देने में जातक की सहायता करता है। अतः जब यह कुंडली के 1, 2,5, 9, 10, भावों में हो तो पन्ना रत्न धारण करना शुभ होता है। अगर बुध 3,4, 6,7,8,11, 12 वें भाव में हो पन्ना धारण न करें, ऐसी स्थिति में अपने ज्योतिषी से सलाह अवस्य लें ।

वृषभ लग्न में गुरु रत्न पुखराज  Yello Topaz

इस लग्न में देवगुरु वृहस्पति दो अशुभ भाव आठवें एवं ग्यारहवें के स्वामी होते हैं, ज्योतिष अनुभव के आधार पर इस लग्न के लिए गुरु शुभ नहीं होते, यह वृषभ लग्न के स्वामी शुक्र के शत्रु भी हैं, फिर भी अगर वृहस्पति की महादशा अन्तर्दशा हो और यह कुंडली के 2, 4, 5, 9 भाव में स्थित हों तो अपने ज्योतिषी से सलाह लेकर ऐसा पुखराज धारण करें जिसमे पीलापन न के बराबर हो। अन्य भावों में स्थित होने पर पुखराज धारण नहीं करना चाहिए । 

वृषभ लग्न में शुक्र रत्न हिरा Daimond अथवा ओपल Opal

इस लग्न में शुक्र लग्न और छठे भाव के स्वामी हो जाते हैं और इनकी मूल त्रिकोण राशी तुला छठे भाव में अति है ऐसे में शुक्र अपनी मूल त्रिकोण राशी का फल अधिक करेंगे जो बीमारी, शत्रुता, चोट, कर्जा आदि की हो जाएगी ऐसे में हिरा पहनने से पहले बहुत सावधानी बरतें व अपने ज्योतिषी से सलाह अवश्य ले लें, अगर शुक्र की दशा-अन्तर्दशा हो और शुक्र कुंडली के 1, 2, 4, 7, 9, 10, 11, भावों में हो तभी हिरा अथवा ओपल रत्न धारण करें अन्य भावों में होने पर इसकी पूजा करें रत्न न धारण करें। 

वृषभ लग्न में शनि रत्न नीलम  Blue Sapphire

इस लग्न में शनि राजयोग कारक होते हैं, इनकी दोनों राशियाँ  नवम भाव एवं दशम भाव में आती हैं, यह दोनों भाव अत्यंत शुभ हैं, ज्योतिष में शनि को धर्म, कर्म  एवं न्याय का ग्रह कहा गया है अतः यह यहाँ स्वयं धर्मेश एवं कर्मेश होकर अत्यंत शुभ हो जातें हैं, अतः जब भी शनि कुंडली के 1, 2, 5, 9, 10, 11 भाव में स्थित हों तब नीलम अवश्य धारण करना चाहिए विशेषकर जब इनकी महादशा एवं अन्तर्दशा हो।

वृषभ लग्न में राहु रत्न गोमेद Onyx

इस लग्न में राहु का फल मिला जुला होता है, यह लग्नेश शुक्र के मित्र भी हैं, गोमेद धारण करें से कुछ शुभ फल मिलता है तो अशुभ फल अधिक मिलता है,  अगर कुंडली के अनुसार राहु की दशा-अन्तर्दशा चल रही हो तब गोमेद धारण करने से पहले अपने ज्योतिषी से सलाह अवश्य हि लें, मेरे ( पं. उदय प्रकाश शर्मा )  के अपने अनुभव के अनुसार राहु जब कुंडली के 1, 2, 5, 9, 10, 11 वें  भाव में बैठा हो तब इसे बुध रत्न पन्ना के साथ धारण करें, अन्यथा गोमेद को धारण करने से बचें बल्कि इसकी पूजा और मन्त्र जप श्रेष्ठ रहेगा। 

वृषभ लग्न में केतु रत्न लहसुनियाँ  Cat.s Eye

इस लग्न में राहु की तरह केतु को भी समझें और केतु कुंडली के 1, 2, 5, 11 में हो तब ही लहसुनियाँ रत्न धारण करें पर धारण करने से पहले अपनी कुंडली का अपने ज्योतिष से परामर्श अवश्य कर लेवें । अन्य भावों में स्थित होने पर केतु की पूजा करें।

।। इति शुभम् ।।

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रविवार, 27 दिसंबर 2020

paschim disha vastu shastra । पश्चिम दिशा वास्तु शास्त्र

पश्चिम दिशा वास्तु शास्त्र । paschim disha

पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि हैं तथा देवता वरुण है। यह दिशा वायु तत्व को प्रभावित करती है। शनि को ज्योतिष में भगवान शंकर द्वारा न्यायाधीश की पदवी प्राप्त हुई है। यह हमारे कर्मो के आधार पर फला-फल की न्यायोचित व्यवस्था करते हैं। 

paschim disha vastu shastra ।  पश्चिम दिशा वास्तु शास्त्र



क्यों की आज कलयुग में बुरे कर्मों का बोलबाला है, सो अधिकांश लोग शनि देव को लेकर भय एवं भ्रम की स्थिति में रहते हैं। वास्तु में इस दिशा को कारोबार, गौरव, स्थायित्व, यश और सौभाग्य के लीये जाना जाता है।

इस दिशा में सूर्यास्त होता है, वहीँ आम जनमानस में डूबते हुए सूर्य को देखना शुभ नहीं माना जाता क्यों की सूर्य की ढलती हुई किरणे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं इसलिए आवश्यक है कि हम भवन में पश्चिम दिशा में भारी और ऊँचा निर्माण करें। 

वास्तु अनुसार इस दिशा में डाइनिग रूम बनवाना शुभ होता है। यहाँ शयनकक्ष भी बनाना शुभ होता है।  वास्तु आचार्य उदय प्रकाश शर्मा के अनुभव के अनुसार इस दिशा में बच्चों के लिए उनके पढ़ने का कमरा बनवाना उत्तम होता है क्यों की शनि ग्रह किसी भी विषय की गहराई में जाने की शक्ति प्रदान करते हैं सो यहाँ बच्चों में गंभीरता आती हैं और वह बुद्धिजीवी होते हैं। 

यह दिशा जल के देवता वरुण की है इसलिए यहाँ रसोईघर अच्छा नहीं माना गया है। रसोई में अग्नि की प्रधानता होती है और अग्नि एवं जल आपस में शत्रु होते हैं। वैसे इसके अलावां इस दिशा में लगभग सभी निर्माण किये जा सकते हैं।

।। इति शुभम् ।।


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