guru mantra । बृहस्पति ग्रह के मंत्र एवं उपाय
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brihaspati mantra |
कुंडली में गुरु अगर शुभ और बलवान हैं तो उपरोक्त सभी फल जातक को मिलता है। पर अगर संयोग बस गुरु अशुभ, पीड़ित व निर्बल हुए तो जातक दिन-हिन बनकर रह जाता है। ऐसे में गुरु की कृपा प्राप्ति जातक के लिए कितनी आवस्यक हो जाती है यह कहने की जरुरत नहीं । अब सवाल उठता है ग्रह देव वृहस्पति को किस मन्त्र अथवा उपाय से प्रसन्न किया जाये, क्या दान किया जाये, क्या पाठ किया जाये.. जिनसे उनके शुभ फल प्राप्त हों.. तो आईये मित्रों मै उनके मन्त्र व उपायों को आप के सामने रखने का प्रयास कर रहा हूँ। आप इनसे लाभ उठायें ।
नोट- निम्नलिखित किसी भी मन्त्र द्वारा ग्रह देव वृहस्पति का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है, इनमे से एक अथवा कई उपाय एक साथ किए जा सकतें है यह अपनी श्रद्धा पे निर्भर करता है। यह सभी बारम्बार अजमाए हुए फलित उपाय है।
वृहस्पति ग्रह का पौराणिक मन्त्र
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम्।बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।
वृहस्पति ग्रह का गायत्री मन्त्र
ॐ अंगिरसाय विद्महे दण्डायुधाय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात् ।।वृहस्पति ग्रह का वैदिक मन्त्र
ऊँ बृहस्पते अति यदर्यो अहद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।यदीदयच्छवस ऋत प्रजात। तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
वृहस्पति ग्रह का बीज मंत्र
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमःजप संख्या_ 19000
समय_ शुक्ल पक्ष में गुरु की होरा में
वृहस्पति ग्रह का तांत्रिक मन्त्र
ॐ बृं बृहस्पतये नमःवृहस्पति ग्रह का पूजा मंत्र
ॐ बृहम बृहस्पतये नमःयह मंत्र बोलते हुए गुरु प्रतिमा अथवा गुरु यंत्र का पूजन करें।वृहस्पति ग्रह का दान
ग्रह देव वृहस्पति का दिन होता है गुरुवार और इनका रंग होता है पिला । गुरु के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चने की दाल, केले, पीले वस्त्र, पीले चावल, केशर, पुखराज, शहद, पीले फूल-फल, पिली मिठाईयां, हल्दी, कांसे के बर्तन, घोडा, घी, बेसन के लड्डू, कोई भी धर्म ग्रंथ, सोना दान करना सुखकारी होता है। यह दान गुरुवार को और सुबह के समय देना चाहिए, दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। (विशेष- कर्ज और उधार लेकर कभी दान न दें)मंगल ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं उपाय
वृहस्पति ग्रह का व्रत
जब भी गुरुवार का व्रत करना हो तो सर्वप्रथम किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार से सुरु करें, सबसे पहले स्नान आदि से निवृत होकर किसी पीले रंग के आसन पर पूर्व दिशा की तरफ मुह कर के बैठ जाएँ, ग्रह देव वृहस्पति का ध्यान करें उनका यंत्र सामने रख लें तो अति उत्तम, अब अपने दहिने हाँथ में शुद्ध जल ले लें और उनसे अपनी मनोकामना कहकर संकल्प करें कि हे ग्रह देव वृहस्पति मै अपनी यह मनोकामना लेकर आप की इतने गुरुवार का व्रत करने का संकल्प करता हूँ। आप मेंरे मनोरथ पूर्ण करें और मुझे आशीर्वाद दें, यह कह कर हाँथ में लिया हुआ जल धरती पर गिरा दें, ऐसा संकल्प सिर्फ प्रथम गुरुवार को करना है। तत्पपश्च्यात श्रद्धा भाव से गुरु देव का पंचोपचार पूजन करें व ऊपर लिखित किसी भी मन्त्र का 1, 3, 5, 7, 9, 11 जितना भी संभव हो उतनी माला जप करें। दिन में फलाहार कर सकते हैं। संध्या समय भोजन कर सकते हैं भोजन में मीठी खीर, लड्डू, गुड-चीनी, गुडपट्टी का सेवन कर सकते हैं। इस प्रकार करने से देव गुरु वृहस्पति की कृपा व उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।जितना संकल्प किया था उतना व्रत पूर्ण होने पर व्रत का पारण करना चाहीए, किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन करना चाहिए व गुरु की वस्तुए दान करनी चाहिए।
वृहस्पति ग्रह के कुंडली में शुभ होकर कमजोर होने पर
* गुरुवार को केसर का तिलक लगाने से बृहस्पति मजबूत हो जाता है।* अगर 27 गुरुवार लगातार तिलक लगाया जाता है तो बृहस्पति का शुभ प्रभाव बढ़ जाता है।
* पुखराज नग सोने की अंगूठी में सीधे हाथ की तर्जनी उंगली में धारण करने से बृहस्पति का प्रभाव बढ़ जाता है।
* पीले कलर के कपडे धारण करने से भी गुरु का प्रभाव बढ़ जाता है।
* नित्य कुछ समय कोई भी जो आप को पसंद हो.. धर्मग्रन्थ पढना चाहिए।
* घर में हलके पीले कलर के पर्दे व तकिये प्रयोग में लाने चाहिए * ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए।
* रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
* घर पे जगह हो तो पीले फुल के पौधे रोपने चाहिए और नित्य उसमे पानी डालना चाहिए ।
सूर्य ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं अचूक उपाय
वृहस्पति ग्रह के कुंडली में नीच अथवा अशुभ होने की स्थिति में
* गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।* केला का सेवन और सोने वाले कमरे में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।
* ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए।
* रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
* कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों में बांटनी चाहिए ।
* पंक्षियों विशेषकर कौओं को पिली मिठाई देना चाहिए।
* व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
* बादाम व् नारियल पीले कपडे में लपेटकर बहते पानी में कम से कम 7 गुरुवार बहाना चाहिए।
* ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए तथा कोई धर्म ग्रन्थ किसी बुजुर्ग ब्राह्मण को देना चाहिए ।
* गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
* गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
* घर में वर्ष में एक बार अखंड रामायण का पाठ करवाना चाहिये।
* गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को पीले वस्त्र एवं फुल के बर्तन दान करना चाहिये
नोट- इनमे से कोई एक अथवा कई उपाय श्रधा पूर्वक करना चाहिए। तथा गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपायों हेतु गुरुवार का दिन, शुक्ल पक्ष, गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
इनके अंलावा गुरु ग्रह से संबंधित कैसी भी परेशानी हो तो निम्नलिखित स्त्रोत का नित्य पाठ करें अगर नित्य संभव न हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार से प्रारम्भ कर के हर गुरुवार को नियम पूर्वक इसका पाठ करें, स्कन्द पुराण में वर्णित इस पाठ का बहोत ही महत्व है, इससे जीवन में ग्रह देव बुध से संबंधित उपरोक्त सभी फल प्राप्त होते हैं।
विधि- सर्व प्रथम स्नानआदि से निवृत होकर पीले आसन पे बैठकर ग्रह देव वृहस्पति का ध्यान करें व श्रद्धापूर्वक पंचोपचार (धुप, गंध/चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाँथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मन्त्र को पढ़ें।
( विनियोग का बहुत महत्त्व है। जैसे- किसी भी मन्त्र या स्तोत्र या छंद को जपने, पढने का उदेश्य क्या है, उसको खोजने वाले, रचना करने वाले ऋषि कौन है अदि.. हम विनयोग द्वारा उस मन्त्र आदि को अपने कल्याण के लिए उपयोग कर रहे हैं और उसके रचयिता का आभार कर रहे हैं )
विनियोग मन्त्र.
अस्य श्री बृहस्पतिस्तोत्रस्य गृत्समद ऋषि: अनुष्टुप छन्द: बृहस्पतिर्देवता, बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
गुरुर्बृहस्पतिर्जीव: सुराचार्यो विदां वरः।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा ॥1॥
सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुड्मलद्युतिः ॥2॥
लोकपूज्यो लोकगुरुः नीतिज्ञो नीतिकारकः।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवेद्यः पितामहः ॥3॥
भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत् ।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः ॥4॥
जीवेद्दर्षशतं मत्यो पापं नश्यति।
यः पूजयेत् गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः ॥5॥
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम् ।
ब्रह्मणान् भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेत् गुरोः ॥6॥
॥ इति श्री स्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
।।इति शुभम्।।
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